मनावर |
धार जिले के मनावर तहसील के ग्राम टोंकी में आदित्य बिड़ला ग्रुप द्वारा तीन हजार करोड़ से भी अधिक की लागत से बनने वाले सीमेन्ट संयंत्र का निर्माण होने जा रहा है, जिससे क्षेत्र के पढ़े लिखेयुवाओं को रोजगार की आस बंधी है तो भूमिहीन खेत मजदुरो को भी लगी है मजदूरी मिलने की उम्मीद | निश्चित ही इस क्षेत्र के विकास में यह आदित्य बिड़ला ग्रुप का सराहनीय योगदान होगा क्योकि उद्योगोके अभाव में राष्ट्र के विकास की कोरी कल्पना भी साकार रूप नहीं ले सकती, लेकिन अनादी काल से कृषि आधारित राष्ट्र भारत वर्ष की पहचान को भी युं विकास के नाम पर मिटाया नहीं जा सकता। इसलियेविकास के साथ साथ किसानों की माली हालत को नकार ने की बजाय इस सोच को भी जिन्दा रखना होगा की यही किसान है जो देश के पालनहार है तभी हो पायेगा नव भारत का सच्चा समूचा निर्माण,लेकिन औद्योगिक क्षेत्रों से अनजान ग्रामीण खेती करने वाले किसान नहीं समझ पा रहे औद्योगिक घरानों की परंपरागत पांसों की पेनी चाल। जो न सिर्फ हड़प नीति के जनक माने जाते है बल्कि मिठाई में जहरखिलाना ही इनके सिद्धान्तों में निहित होता है। शायद इसीलिये अल्ट्रा टेक् द्वारा नहीं हो रहा वर्तमान भूमि अधिग्रहण नियमो का संपुर्ण पालन, क्योंकि आदित्य बिड़ला ग्रुप द्वारा आज भी किसानों को वहीमुआवजा राशि दी जा रही है जो स्वतंत्र भारत के पूर्व 1894 में अग्रेजो द्वारा निर्धारित की गई थी। इसलिये यह कहना अतिसंयोक्ति नहीं होगा की आज भी सिर्फ हमारा देश आजाद हुआ है सोहन हमारा बूढ़ाकानुन नहीं। अन्यथा यदि सच में राष्ट्र की रीड कहे जाने वाले किसान वास्तविक में स्वतंत्र भारत में सांसे ले रहे होते तो क्या उन्हें आज वह मुआवजा राशि नहीं मिलनी चाहिये थी जो भूमि अधिग्रहण कानुन2013 में निर्धारित किया गया था।
शहरी क्षेत्र में जमीन के बाजार मुल्य का दो गुना व ग्रामीण क्षेत्र में जमीन मूल्य का चार गुना के साथ ही विस्थापन नीति का भी अक्षरत: पालन भी करना अनिवार्य होगा लेकिन सार्वजनिक हित का हवाला देकर नगण्य मुआवजा राशि देकर प्रभावित भु स्वामियों को भगवान भरोसे छोड़ देना ही भूमि अधिग्रण कानून है मध्य प्रदेश के माफियाओ की परम्परा
चाहे वो ओंकारेश्वर नहर परियोजना हो या सरदार सरोवर डेम निर्माण, रोड निर्माण हो या उद्योगीक्षेत के लिये भूमि आवंटन किसान को तो हटना ही होगा बस लेकिन इसी हिटलरशाही के दबाव व स्वयं कीअनभिज्ञता अज्ञानता से अत्याचार सहने की परंपरा ने किसानों को भी पंगु बना दिया। जिससे वे नहीं ले पाते अपने अधिकारिक अधिकार, तो कुछ एक परंपरागत अफसर शाही की मिली भगत से भी कर रहेकिसानों को लेंड एक्वायर्ड नियमावली से गुमराह। जिससे किसानों ने भी भाग्य के भरोसे अपनी पुश्तेनी जीवन का निर्वहन करने वाली भूमि को बेचने की दे दी मोन स्वीकृति, तो वही कुछ चंद बड़े छोटेकार्यक्रमों में आर्थिक सिद्धि का लाभ लेकर अपनी राजनीति चमकाने वाले नेताओं ने भी न सिर्फ मोन धारण किया है बल्कि संवैधानिक पद पर निर्वाचित जन प्रतिनिधि भी नहीं उठा पा रहे लाचार पीड़ितशोषित मजदुर मजलूम मजदुर किसानों की आवाज।
जिससे न सिर्फ व्यक्तिगत रूप से किसान ठगा जा रहा है बल्कि अनादी समय से खेत मजदूरी से अपनी आजीविका का निर्वहन करने वाले मजदुरो को भी नहीं मिल पा रहा नये भूमि अधिग्रण कानून के नियमोका उचित लाभ।
जिससे वे भी किसानों की बे भाव लूटी जमीन में मेहनत मजदूरी करने का न सिर्फ अधिकार खो चुके बल्कि अपने हक की मजदूरी मेहनत भी नहीं मांग पा रहे है अल्ट्रा टेक् उद्योग निर्माण से जब इस संबंध मेंकुछ शिक्षित किसानों से चर्चा की गई तो बताया गया की ज्यादातर किसान अशिक्षित व कमजोर है तो कुछ कर्ज में डुबे होने के कारण पहले ही अपने हाथ कटवा चुके है। इसलिए हमें भी होना पड़ा उनकी इसअंधी दौड़ में शामिल।
तो कुछ लोगों ने अभी भी लगा रखी है व्यक्तिगत न्यायिक गुहार लेकिन धनाभाव के चलते उनकी भी न्याय मिलने की उम्मीदों की सांसे अब टुटने लगी है। जबकी हमें भुमि अधिग्रहण कानुन की समस्तजानकारियाँ भी है।
लेकिन झुण्ड की तरह ज्यादातर हमारे किसान भाई अपना रास्ता चुन चुके है। तो अब हम बाकी किसान भी चल पड़े है उसी राह जहा मंजिल नहीं है बस चलते जाना है | उस और जब तक मौत अपने गले नलगा ले तभी तो चरितार्थ हो पायेगा घर बेच के तिर्थ जाने की कहावत का सही परी पालन।