नई दिल्ली |
अगर केंद्र और राज्यों की सरकारें देश भर की अदालतों में दाखिल सभी मामलों को वापस लेने का फैसला ले लें तो करीब 3 करोड़ 15 लाख केस कम हो जाएंगे। यानी अदालतों में लंबित कुल मामलों में 46 पर्सेंट की कमी आ जाएगी। केंद्रीय कानून मंत्रालय की ओर से तैयार की गई अपने किस्म की पहली रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक, लंबित केसों के मामले में केंद्र सरकार के टॉप 5 मंत्रालयों में रेलवे, वित्त, गृह, कम्युनिकेशन और रक्षा हैं। इन मंत्रालयों ने अपने अफसरों, दूसरे सरकारी विभागों और कई पीएसयू के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले कोर्ट में दायर कर रखे हैं। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि रेलवे की ओर से देश भर की अदालतों में सबसे ज्यादा 70 हजार मामले दायर हैं। इनमें से 10 हजार तो 10 साल से ज्यादा वक्त से लंबित हैं। इसके बाद वित्त मंत्रालय का नंबर आता है, जिसके 15700 मामले लंबित हैं।
स्टडी में सिर्फ केंद्रीय मंत्रालयों की ओर से लंबित केसों को शामिल किया गया है, राज्यों के मामले नहीं। अगर केंद्र और राज्य सरकारों के केसों को जोड़ दिया जाए तो यह अदालत में लंबित कुल मामलों का 46 पर्सेंट हो जाता है। देश भर की अदालतों में लंबित 3 करोड़ 15 लाख मामलों में सुप्रीम कोर्ट के केसों की हिस्सेदारी 60750 है। हाई कोर्ट में लंबित मामले 40 लाख ,जबकि जिला और अन्य निचली अदालतों में यह संख्या 2 करोड़ 74 लाख है। कानून मंत्रालय के मुताबिक, सरकार की ओर से दाखिल मामलों में सर्विस से जुड़े मुद्दे, निजी कंपनियों से विवाद, दो सरकारी विभागों में विवाद और दो पीएसयू के बीच विवाद शामिल हैं।