1990-2000 के दशक में अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर जोशी की तिकड़ी के लोग फैन थे। अब यह तिकड़ी दरकिनार है। इनकी जगह अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने ले ली है।
भारतीय जनता पार्टी के नायक और कभी कर्ताधर्ता रहे सीनियर लीडर लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति उम्मीदवार नहीं बनाए जाने से उनके चाहने वाले काफी दु:खी हैं। बिहार के लोगों का उनसे गहरा लगाव रहा है। भाजपा सांसद और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा तो पहले से ही उनकी वकालत कर रहे थे। लोगों को उम्मीद थी कि आडवाणी ही एनडीए के प्रत्याशी होंगे लेकिन इनकी उम्मीदों पर पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने सोमवार को पानी फेरते हुए बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति उम्मीदवार बना दिया।
दरअसल, आडवाणी को चमकाने में बिहार का भी बड़ा योगदान रहा है। चुनाव प्रचार का मामला हो या उनकी राम रथ यात्रा हो। आडवाणी बिहार जरूर आए। उनकी राम रथ यात्रा को समस्तीपुर में रोककर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने सियासी भूचाल ला दिया था। यह बात 23 अक्तूबर 1990 की है। उन्हें गिरफ्तार कर दुमका के मसानजोड़ डाकबंगला में नजरबंद कर दिया गया था। इन्हें गिरफ्तार करवानेवाले आईएएस अधिकारी आरके सिंह थे, जो फिलहाल बिहार के आरा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद हैं। मसलन, भाजपा ने अपने नायक को गिरफ्तार करने का उन्हें यह तोहफा दिया है। 1990-2000 के दशक में अटल-आडवाणी-मुरली मनोहर जोशी की तिकड़ी के लोग फैन थे। अब यह तिकड़ी दरकिनार है। इनकी जगह अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने ले ली है। यह अलग बात है कि अर्से से इस तिकड़ी की बदौलत ही भाजपा आज सत्ता के शिखर पर बैठी है। आडवाणी ने हमेशा कश्मीर समस्या का मुद्दा उठाया। इसी का नतीजा है कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा मजबूत हुई और आज महबूबा के साथ मिलकर सत्तासीन है। अब स्थिति-परिस्थिति जो भी बदली हो लेकिन यह तय है कि आडवाणी ने इन यात्राओं के जरिए न केवल हजारों किलोमीटर की यात्राएं की हैं बल्कि भारतीय जनता पार्टी को गांव-गांव तक जनमानस के मन में बैठाया है। इसके बावजूद उन्हें इस कदर राजनीतिक सफर में अलग-थलग कर देना पार्टी के पुराने वफादारों को खटक रहा है। वो कहते हैं उन्हें ऐसी सिला मिलेगी, ऐसा सोचा भी नहीं था।