नई दिल्ली |
आर्मी चीफ मेजर जनरल बिपिन रावत की तुलना ब्रिटिश जनरल डायर से करने के मामले में विवाद खड़ा हो गया है। इतिहासकार पार्थो चटर्जी ने एक लेख में कश्मीर में मानव ढाल वाली घटना के संदर्भ में जनरल रावत की तुलना डायर से कर दी है। सेना के पूर्व अफसरों की तरफ से इसकी तीखी आलोचना की गई है। वहीं पार्थो चटर्जी का कहना है कि वह अपने विचारों पर कायम हैं।
ब्रिटिश जनरल डायर जलियांवाला बाग गोलीकांड के लिए कुख्यात है, जिसमें निरीह और निहत्थे भारतीयों को मार दिया गया था। चटर्जी ने वेबसाइट वायर के लिए 2 जून को लिखे गए लेख में लिखा है कि कश्मीर ‘जनरल डायर मोमेंट’ से गुजर रहा है। उन्होंने तर्क दिया है कि 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के पीछे ब्रिटिश सेना के तर्क और कश्मीर में भारतीय सेना की कार्रवाई (मानव ढाल) का बचाव, दोनों में समानताएं हैं।
चटर्जी अपने लेख की शुरुआत जनरल डायर के कोट से करते हैं जिसमें वह जलियांवाला बाग हत्याकांड को अपनी ड्यूटी बताकर जस्टिफाई कर रहा है। इसके बाद चटर्जी ने कश्मीर की उस घटना का जिक्र किया है जिसमें मेजर गोगोई ने कश्मीरी युवक फारूक अहमद डार को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल किया था। चटर्जी लिखते हैं कि आर्मी चीफ ने कश्मीर में चल रहे ‘डर्टी वॉर’ का जिक्र कर इसे न केवल ड्यूटी बता डिफेंड किया बल्कि ‘नया तरीका’ अपनाने के लिए गोगोई की पीठ भी थपथपाई।
चटर्जी ने लिखा है कि जलियांवाला बाग में भारतीयों को मारने वाला जनरल डायर भी इसे अपनी ड्यूटी समझता था। उसे भी लगता था कि वह एक विद्रोही आबादी का सामना कर रहा है। चटर्जी को अपने इस लेख की वजह से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। रिटायर्ड ऑर्मी ऑफिसरों ने इसकी भर्त्सना करते हुए अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है।