लखनऊ |
छिटकते दलित वोट बैंक को संभालने के लिए बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती फिर से सड़क पर उतरने जा रही हैं। 23 साल बाद वे मंगलवार को दिल्ली से सहारनपुर तक सड़क मार्ग से यात्रा करेंगी। वे शब्बीरपुर गांव के उन पीड़ित दलित परिवारों से मिलेंगीं, जिनका एक समुदाय के लोगों ने पिछले दिनों की हिंसा में घर जला दिया। 1994 के गेस्ट हाउस कांड के बाद से मायावती ने कभी इतनी दूरी सड़क मार्ग से नहीं तय की है।
माना जा रहा है कि यह मायावती का सियासी दांव है। वे इस यात्रा के बहाने एक बार फिर दलितों का भरोसा जीतने और उन्हें एकजुट करने की जुगत में हैं। असल में जिन दलितों के सहारे मायावती ने बहुजन समाज पार्टी को खड़ा किया और कई बार सत्ता का सुख भोगा, वही अब उनसे छिटकते जा रहे हैं। पहले 2012 का विधानसभा चुनाव हारीं, फिर 2014 का लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकीं और 2017 के विधानसभा चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा।
इसके पीछे माना गया कि दलितों का बसपा से मोह भंग हो चुका है और वे दूसरे दलों की ओर जा रहे हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी के भीतर मायावती के खिलाफ आवाज उठी और उन पर दलित सरोकारों से विमुख होने का आरोप लगा। कहा गया कि मायावती दलितों का उपयोग केवल वोट बैंक के तौर पर कर रही हैं और इस वोट बैंक का सौदा कर दूसरे समुदायों के जरिए सत्ता तक पहुंचना उनका लक्ष्य रह गया है। इससे दलित बसपा से छिटक रहे हैं।