बीजिंग|
उत्तर कोरिया की वजह से समूचे दक्षिण पूर्वी एशिया में जो संकट मंडरा रहा है उसकी वजह सभी को मालूम है। कभी जापान का हिस्सा रहा उत्तर कोरिया आज किम जोंग उन के नेतृत्व में लगातार अपनी परमाणु बम बनाने की क्षमता में वृद्धि कर रहा है। अमरीका से भले ही उसका छत्तीस का आंकड़ा हो लेकिन इस क्षेत्र में उसका सबसे बड़ा दुश्मन दक्षिण कोरिया ही है। 2006 से ही उत्तर कोरिया लगातार परमाणु और मिसाइल परीक्षण कर क्षेत्र में तनाव बढ़ाने का काम करता रहा है। रविवार को ही उसने बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर एक बार फिर से तनाव को बढ़ाने में मदद की है।
यह सब कुछ उस समय में हो रहा है जब कुछ समय पहले ही उत्तर कोरिया-चीन और अमरीका ने क्षेत्र में शांति की अोर कदम बढ़ाने के लिए वार्ता करने की जरूरत और इसकी अहमियत बताई थी। लेकिन ताजा मिसाइल परीक्षण ने एक बार फिर से हालातों को बदलने का काम किया है। बहरहाल, मौजूदा समय में बढ़ते तनाव के बीच यह जानना बेहद दिलचस्प होगा कि आखिर दक्षिण कोरिया-उत्तर कोरिया और अमरीका के बीच उभरे इस तनाव में चीन की क्या भूमिका होगी। चीन और उत्तर कोरिया के बीच शुरुआती दौर से ही व्यापारिक और राजनयिक संधि कायम हैं।
इतना ही नहीं कोरियाई युद्ध के दौरान चीन उत्तर कोरिया के समर्थन में लड़ भी चुका है। यदि उस वक्त अमरीका संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पास करवाकर अचानक न आ धमकता तो उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया को कब का निगल चुका होता। वहीं हाल में उभरे तनाव के बीच चीन बार-बार वार्ता पर जोर देता रहा है। यह शांति बनाए रखने के लिए उसका अच्छा कदम कहा जा सकता है। लेकिन इसके पीछे कुछ राजनीतिक और कुछ कुटनीतिक मजबूरियां छिपी हैं। इनमें से पहली मजबूरी यह है कि चीन मौजूदा समय में जबकि वह खुद दक्षिण चीन सागर पर चारों और से घिरा है, अमरीका से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहेगा।