प्योंगयांग |
दुनिया के 150 देशों में 3 लाख से भी ज्यादा कंप्यूटर्स को प्रभावित करने वाले रैन्समवेयर वानाक्राइ (साइबर हमले) के पीछे उत्तर कोरिया का हाथ हो सकता है। साइबर सुरक्षा से जुड़े शोधकर्ताओं को इससे जुड़े तकनीकी सबूत मिले हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर इस साइबर हमले का संबंध उत्तर कोरिया से जोड़ा जा सकता है।
सिमेंटेक और केस्परस्काई लैब ने बताया कि वानाक्राइ सॉफ्टवेयर के एक पूर्व वर्ज़न में जो कोडिंग इस्तेमाल की गई थी, उसके कुछ कोड्स को लैजरस ग्रुप ने अपने कुछ प्रोग्राम में भी इस्तेमाल किया था। दुनिया भर के कई साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि लैजरस असल में उत्तर कोरिया का हैकिंग ऑपरेशन है। केस्परस्काई के एक शोधकर्ता ने रॉयटर्स से बात करते हुए कहा, ‘वानाक्राइ कहां से आया और किसने इसे बनाया, इससे जुड़ा यह सबसे अहम सबूत है।’ हालांकि दोनों कंपनियों का कहना है कि इन ताजा साइबर हमलों के पीछे उत्तर कोरिया का ही हाथ है, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। मालूम हो कि गूगल के सिक्योरिटी रिसर्चर नील मेहता ने भी इससे जुड़े कुछ सबूत ट्विटर पर साझा किए थे।
शुक्रवार को शुरू हुआ यह साइबर हमला सोमवार को अपेक्षाकृत धीमा हो गया। वानाक्राइ कहां से आया, इसे लेकर दुनिया भर के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ शोध में लगे हैं। इस रिसर्च पर सुरक्षा एजेंसियों की भी नजर है। वॉशिंगटन में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के होमलैंड सुरक्षा सलाहकार ने सोमवार को बताया कि इस वानाक्राइ अटैक के पीछे विदेशी ताकतों से लेकर साइबर अपराधियों तक का हाथ हो सकता है। सिमेंटेक और केस्परस्काई लैब ने कहा है कि उन्हें वानाक्राइ की कोडिंग को पढ़ने के लिए अभी और समय चाहिए। हैकर्स अक्सर पुराने ऑपरेशन्स में इस्तेमाल की गई कोडिंग को फिर से इस्तेमाल में लाते हैं। ऐसे में ये कोडिंग्स भी सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए सबूत का काम करते हैं।