नई दिल्ली |
आईटी सेक्टर को कभी जॉब के लिहाज से सबसे अच्छा माना जाता था और आईटी में जॉब करने वालों को इंडिया की बढ़ती पावर और चाहतों का पोस्टर बाय। पश्चिमी जगत के मुकाबले सस्ते में काम करने की क्षमता के दम पर मजबूत हुए आईटी आउसोर्सिंग सर्विसेज सेक्टर ने एजुकेटेड मिडल क्लास में उम्मीदों और तरक्की की नई चमक पैदा की थी। हालांकि उस इंडियन ड्रीम को झटका लग चुका है।
अमेरिकी फर्मों को स्पेशलिटी सेगमेंट्स में अस्थायी तौर पर विदेशी कामगार हायर करने की इजाजत देने वाले एच-1बी वीजा पर प्रतिबंध लग चुका है। वह भी ऐसे वक्त, जब दूसरी वजहों से भी आईटी सर्विसेज सेक्टर की हालत पतली दिख रही है। ऐसे में इंडियन आईटी सेक्टर को कॉम्पिटिशन में बने रहने और अपने करीब 40 लाख कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए दशकों पुराना बिजनस मॉडल बदलना होगा। हालांकि इनमें सभी लोगों की जॉब नहीं बचेगी।
आईटी वर्कर्स की ही तरह इंडिया की लगभग 48 करोड़ वर्कफोर्स के सामने भी समस्या है।
एक दशक पहले अपने पीक पर रहने के दौरान टेलिकॉम इंडस्ट्री में 40 लाख से ज्यादा वर्कर थे, लेकिन अब कंसॉलिडेशन (वोडाफोन-आइडिया और एयरसेल-आरकॉम) और टेक्नॉलजी के मामले में प्रगति ने हालात बदल दिए हैं। निकट भविष्य में इस इंडस्ट्री में 30-40% एंप्लॉयीज की जॉब जा सकती है। इसके अलावा स्ट्रेस्ड एसेट्स से दबे हुए बैंकिंग सेक्टर के कर्मचरियों पर डिजिटल टेक्नॉलजी की मार पड़ रही है। उदाहरण के लिए, एचडीएफसी बैंक के कर्मचारियों की संख्या 2016-17 की तीसरी तिमाही में 4500 कम हो गई, साथ ही बैंक नई हायरिंग में भी सुस्ती दिखा रहा है।