अहमदाबाद |
इन दिनों स्कूलों में बच्चों के एडमिशन का दौर चल रहा है। यह वक्त बच्चों के लिए जितना जरूरी है, पैरंट्स के लिए उससे कहीं ज्यादा खास है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे के माता या पिता जेल में ही क्यों न हों। गुजरात हाई कोर्ट में ऐसे कई कैदियों की लंबी कतार है, जो अपने बच्चे के एडमिशन और फीस के इंतजाम के लिए जमानत चाहते हैं।
2002 के नरौदा पाटिया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे शशिकांत मराठी ने भी कोर्ट से उसे कुछ दिन के लिए रिहा करने की रिक्वेस्ट की है, इसके पीछे उसने अपने बच्चे के एडमिशन के लिए फीस का इंतजाम करने दलील दी है। शशिकांत ने इसके सपॉर्ट में अपने बच्चे की मार्कशीट भी कोर्ट में पेश की है। कोर्ट ने उसे 5 दिन की जमानत दे दी है।
इसी तरह, हाई कोर्ट ने करीब पिछले तीन दिनों में ऐसे करीब 20 लोगों को जमानत या पेरोल पर रिहा किया है, जिन्होंने अपने बच्चे के स्कूल में एडमिशन या फीस के इंतजाम करने के लिए राहत मांगी थी।
दीसा के दीपक गढ़वी की जमानत इसी आधार पर आगे बढ़ गई है कि उसे अपने बेटे पार्थ का एडमिशन कराने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। गढ़वी गैंगरेप के जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहा है। उसे अपने बेटे की आंखों का इलाज कराने के लिए जमानत मिली थी। गढ़वी का बेटा पार्थ माउंट आबू में पढ़ता है और मेडिकल कंडीशन पर उसका स्कूल घर के पास करने की मांग की गई है। गढ़वी पहले से जमानत पर बाहर था। ऐसे में कोर्ट ने उसकी जमानत बढ़ा दी है, ताकि वह अपने बच्चे का एडमिशन करा सके।
हत्या के दोषी राजेश ठकोर को अपने 3 बच्चों के दाखिले का इंतजाम करने के लिए जमानत पर 7 दिन की रिहाई मिली है। इकबाहुसैन शेख को अपने बच्चे की स्कूल फीस का इंतजाम करने के लिए 15 दिन की जमानत मिली है। वहीं अशोक राठौड़ को अपनी बेटी सोनल की स्कूल फीस का इंतजाम करने के लिए 15 दिन की पेरोल पर रिहा किया गया है। हालांकि कोर्ट की तरफ से कैदी की बैकग्राउंड और बर्ताव को ध्यान में रखते हुए जमानत दी जाती है।