इलाहबाद।
देश में ज्वलंत मुद्दा बन चुके तीन तलाक को लेकर इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि तलाक का यह तरीका महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों की समानता पर सवाल उठाता है। अदलात ने आगे कहा कि पर्सनल लॉ के नाम पर किसी महिला के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। लिंग के आधार पर आधारभूत और मौलिक आधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने अपने ऑब्डर्वेशन में कहा कि मुस्लिम पति किसी ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता जो कि समान अधिकारों पर सवाल खड़े करता हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के कार्यक्षेत्र में ही निजी कानून लागू हो सकते हैं, साथ ही यह कहा कि फतवा न्यायिक व्यवस्था के उलट है और वेलिड नहीं है। फतवा किसी के अधिकारों के उलट नहीं हो सकता।
बता दें कि पिछले साल दिसंबर में इलाहबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक कहकर किसी मुस्लिम महिला को तलाक देने को असंवैधानिक करार दिया था। कोर्ट ने यह भी ऑब्जर्व किया कि तीन तलाक असंवैधानिक है और यह मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन करता है, कोई भी पर्सनल लॉ संविधान से ऊपर नहीं है। इस साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संविधान बेंच को भेजा था और इस पर अब 11 मई को सुनवाई होगी।