एक ऐसा शहर जहां गरबे को माना जाता है देवता और गरबा बाबा के रूप में होती उसकी पूजा
अर्पण जैन ‘अविचल’

गरबा बाबा
यूँ तो भारत देश विभिन्नताओं का राष्ट्र हैं, जहाँ हर दिन त्यौहार और हर पल उत्सव होता हैं| इसी उत्सव का आनंद ही मिलजुल कर मनाने में हैं |
इसी के चलते आज हम आपकों ले चलते है, मध्यप्रदेश के धार जिले के कुक्षी में जहाँ शारदेय नवरात्रि के पहले दिन पाटीदार समाज व दशा वैष्णव पोरवाड़ समाज सहित गुजराती मूल के लोग सभी शक्ति की आराधना के प्रविण प्रकल्प गरबा जो कि नृत्य के रुप में मशहुर है उसे भी देवतुल्य मान कर उसकी भी आराधना करते है | गणगौर के समान ही प्रत्येक परिवार अपने घर गरबा बाबा की स्थापना करता है और उनकी नौ दिन आराधना करता हैं|
गरबा बाबा क्या हैं
शारदेय नवरात्री के प्रथम दिवस कच्ची मिट्टी की कलशनुमा हुण्डी के अंदर एक प्रज्वलित दीपक रखा जाता है, उस कलश के उपर भी एक दीपक रखा जाता है,
इसे जोड़े से घर में लाकर *गरबा बाबा* मान कर पूजा की जाती हैं|
प्रथम दिवस व नवमी के दिन सुबह-शाम दोनों समय पुजन होता है, और अन्य दिन केवल शाम में ही दीप प्रज्वलित कर आराधना की जाती हैं|
और नवरात्र के अंतिम दिवस नवमी के दिन प्रात: नव दिवसीय आराधना के उपरांत विसर्जन का प्रावधान है,जिसे स्थानीय लोग *गरबा बाबा पौड़ाना* कहते है|
बरसों से एक ही कुआँ है जिसमें पौड़ाते है गरबा बाबा
बरसों से चली आ रही इस परम्परा में एक और खास बात यह भी है कि कुक्षी गाँव के ही पाटीदार समाज की प्रतिष्ठित परिवार खीरनीवाला जिनके कुएं में शहर भर के हर समाज जन जो गरबा बाबा की स्थापना करते हैं वो विसर्जन के लिए खीरनीवाले के कुएं में ही गरबाबाबा पौड़ाते है | यह कुआ खीरनीवाला परिवार के ने समाज को दान में दे दिया है |
क्यों करते हैं गरबा बाबा की आराधना
चूंकि सनातन में शक्ति को निराकार माना गया है और ज्योत स्वरुप में दर्शन होते हैं, इसी को आधार मानकर निराकार शक्ति की अर्चना की जाती है |
स्थानीय गुजराती मूल के लोग जो कृषि में संलग्न होते है उनकी हर फसल के प्रारंभ में आराधना और फसल के बाद उत्सव मनाने की रिवाज है, इसी तारतम्य में पश्चिम निमाड़ में गणगौर और गरबा बाबा का अधिक महत्व है