नई दिल्ली |
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’ का मानना है कि यह धारणा गलत है कि जनजातियां बिना धर्म की हैं। संघ के संगठन के मुताबिक जनजातियां सनातन धर्म की हैं और वे शुरू से ही वैदिक पद्यति से पूजा करते हैं और भगवान राम, कृष्ण और शिव के गीत गाते हैं। यह स्थापित करने के लिए कि जनजातियों की परंपरा हिंदू धर्म का ही अंग है, संघ का संगठन एक सेमिनार करने जा रहा है।
इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव बालमुकुंद ने बताया कि हम अक्टबूर आखिर में मध्यप्रदेश के बड़वानी में एक सेमिनार करेंगे। इसका विषय ‘जनजाति परंपराओं में भारतीय दर्शन’ रखा गया है। उन्होंने कहा कि अब तक वामपंथियों ने जनजातियों का जो भी इतिहास लिखा है वह न तो रिसर्च के आधार पर है और न ही वह जनजातियों के बीच जाकर लिखा गया। बल्कि वह गलत तरीके से लिखा गया है। संघ प्रचारक के मुताबिक जैसे अब तक यह धारणा बनाई गई है कि जनजातियों का कोई धर्म नहीं हैं। सरकार भी जनजातियों का कोई धर्म नहीं मानती लेकिन हकीकत यह है कि वह सनातन धर्म के हैं। उन्होंने कहा कि हमने जनजातियों के बीच जाकर देखा कि उनके घर पर जो वाद्य यंत्र हैं, वे जो गीत गाते हैं वह राम, कृष्ण औऱ शिव के गीत हैं। वे वैदिक पद्यति से पूजा करते हैं। उन्होंने बताया कि सेमिनार में कई शोधकर्ता और इतिहासकार इसे अपने पेपर के जरिए साबित भी करेंगे।
संघ प्रचारक के मुताबिक जनजातियों की परंपरा में भारतीय दर्शन हैं जो हिंदू परंपरा का अंग है। उन्होंने कहा कि जनजातियों में लड़कियों की मर्जी से उनका विवाह होता है, यह स्त्री की पसंद नापसंद को लेकर भारतीय दर्शन ही है। वे पेड़ों में देवता का वास मानते हैं, नदियों की पूजा करते हैं, जो सनातन परंपरा है। उन्होंने बताया कि सेमिनार में करीब 300 लोग शामिल होंगे और अलग-अलग जनजातियों के बारे में बात करेंगे। ये सभी लोग मध्य प्रदेश में दो दिनों तक जनजातियों के घरों पर ही रुकेंगे।