नई दिल्ली।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की असलीयत सामने आने और ढोंगी बाबा को 20 साल की सजा होने के बाद सोशल मीडिया का एक धड़ा इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे रहा है। बहरहाल, मौजूदा प्रधानमंत्री की भूमिका का तो पता नहीं, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका जरूर स्पष्ट हो गई है।
दरअसल, इस मामले की पूरी जांच सीबीआई के रिटायर डीआईजी एम. नारायणन ने की है। अब नारायणन का कहना है कि तब राम रहीम के खिलाफ जांच नहीं करने को लेकर बहुत दबाव था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस सियासी दबाव को नजरंदाज करते हुए जांच जारी रखने को कहा। सीबीआई की निष्पक्ष जांच का ही नतीजा है कि आज राम रहीम सलाखों के पीछे है।
बकौल नारायणन, तब प्रधानमंत्री ने सीबीआई को फ्री हैंड दिया था। वे पूरी तरह जांच एजेंसी के साथ थे। उनके हमें स्पष्ट निर्देश थे कि हम कानून के अनुसार चलें। उन्होंने दोनों साध्वियों के लिखित बयान पढ़ने के बाद कहा कि पंजाब और हरियाणा के सांसदों के दबाव में आने की कोई जरूरत नहीं।
नारायणन ने यह भी कहा कि दोनों राज्यों के सांसदों से इतना ज्यादा दबाव था कि मनमोहन सिंह ने तब के सीबीआई चीफ विजय शंकर को बुलाया और पूरे मामले की जानकारी ली। उसके बाद से सीबीआई ने अपना काम बिना किसी दबाव के काम किया।
नारायणन ने बताया कि केस में सबसे बड़ी चुनौती आरोपी साध्वी को तलाशना था, क्योंकि तब उसका कोई अता-पता नहीं था। कड़ी मश्ककत के बाद उन्होंने 10 साध्वियों का पता लगाया, लेकिन उनमें से दो ही बोलने को राजी हुईं। हालांकि ये दो गवाहियां ही केस में सबसे अहम कड़ी साबित हुईं।