नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला दिया कि किसी व्यक्ति की निजता का अधिकार उसका मौलिक अधिकार है। इसके बाद अब विवादित बायोमीट्रिक आईडेंटिटी प्रोजेक्ट के साथ ही बीफ खाने और समलैंगिक संबंधों जैसे अन्य प्रतिबंधों की वैधता की भी इस कसौटी पर जांच होगी।
नौ जजों की बेंच ने एक मत से कहा कि निजता का अधिकार, जीवन के अधिकार, आजादी और भाषण के अधिकार में निहित है। मगर, जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा, अपराधों से लड़ने और राज्यों को लाभ के बंटवारे की हो, तो तार्किक प्रतिबंधों के बिना इसे नहीं लागू किया जा सकता।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे ने अपने व्यक्तिगत निष्कर्ष में कहा कि मानव स्वतंत्रता के सभी कार्यों के साथ गोपनीयता का अधिकार अतुलनीय रूप से बाध्य है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गुरुवार को आया फैसला आधार की वैधता के लिए एक कसौटी है।
सरकार 12 अंकों वाले बॉयोमेट्रिक पहचान कार्ड को बैंक खातों के ऑपरेटिंग से लेकर टैक्स के डिक्लेरेशन और संपत्ति खरीदने तक हर जगह इस्तेमाल करने पर जोर दे रही है। वहीं, आलोचकों ने इस कदम का विरोध करते हुए सरकार पर आधार की जानकारियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है। आलोचकों का कहना है कि सरकार घुसपैठ उपकरण के रूप में इसका इस्तेमाल कर रही है।
बताते चलें कि आधार के पंजीयन के लिए सरकार पहले से ही लोगों की उंगलियों के निशान, आईरिस स्कैन कर चुकी है। देश की 80 फीसद से अधिक आबादी यानी करीब देश के 1.25 अरब लोगों का डाटा सरकार के पास पहुंच चुका है।
तीन न्यायाधीशों की एक अलग बेंच पहले से ही आधार बनाने के सरकारी प्रयास को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है। सरकार का तर्क है कि उसके सब्सिडी कार्यक्रमों में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आधार पंजीयन का होना जरूरी है।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया फैसला विस्तृत नागरिक अधिकारों के साथ ही समलैंगिकता को अपराधिक कानून को भी अपनी जद में लेता है। कुछ राज्यों में बीफ खाने और शराब पीने पर प्रतिबंध लगाए जाने का फैसला भी समीक्षा के लिए उठाया जा सकता है।
न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर ने अपने व्यक्तिगत निष्कर्ष कहा कि मुझे नहीं लगता कि राज्य को किसी को भी यह बताना चाहिए कि लोगों को क्या खाना चाहिए या उन्हें कैसे कपड़े पहनने चाहिए या किससे उन्हें अपने व्यक्तिगत, सामाजिक या राजनीतिक जीवन में किससे जुड़ना चाहिए।