भोपाल।
मध्यप्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्यों में भी स्वाइन फ्लू है, लेकिन जानलेवा कम है। वजह, वहां जांच की सुविधाएं ज्यादा हैं। मरीज भी समय पर इलाज के लिए पहुंच जाते हैं, जिससे समय पर इलाज शुरू हो जाता है। मप्र में स्वाइन फ्लू में मौत की दर ज्यादा है। खासतौर पर भोपाल व आसपास के जिलों में।
इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (आईडीएसपी) भोपाल द्वारा 1 जुलाई से अब तक भेजे गए नमूनों में 11 में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। इनमें चार की मौत हो चुकी हैं। यानी पॉजिटिव मरीजों में हर तीसरे-चौथे मरीज की मौत हो रही है।
प्रदेश में एक जुलाई से अब तक 59 मरीजों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। इनमें 8 मरीजों की मौत हुई है। इस संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि मरीज के फेफड़े में संक्रमण बढ़ने पर बचाने में मुश्किल होती है। गांधी मेडिकल कॉलेज के पल्मोनरी मेडिसीन विभाग के प्रमुख डॉ. लोकेन्द्र दवे ने बताया कि कई मरीज ऐसी हालत में अस्पताल पहुंचते हैं कि बीमारी का असर उनके दूसरे अंगों पर भी हो चुका होता है। फेफड़े खराब हो जाते हैं। उन्हें फौरन वेंटिलेटर पर लेना पड़ता है। संक्रमण के दूसरे-तीसरे दिन मरीज अस्पताल पहुंच जाए तो उसे आसानी से ठीक किया जा सकता है।