भोपाल।
पदोन्नति नियम 2002 की जगह नए नियम बनाने का सरकार को पूरा अधिकार है पर इसे क्रियान्वित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति जरूरी होगी। कानूनविदों की राय में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण को लेकर जो भी दिशा-निर्देश दिए हैं, उन्हें पूरा करते हुए यदि नियम बनाए गए हैं तो कोई दिक्कत नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा का कहना है कि नियम का प्रारूप बनाने या नियम बनाने में कोई दिक्कत नहीं है। चूंकि, हाईकोर्ट 2002 के नियमों को निरस्त कर चुकी है और सरकार उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गई है, इसलिए नए नियम को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट से जो निर्णय होगा, उसके आधार पर सरकार कदम उठा सकती है।
वहीं, पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता अजय मिश्रा का कहना है कि नियम बनाने पर कहीं कोई रोक नहीं है। ये तो राज्य सरकार का अधिकार है। हाईकोर्ट का निर्णय पुराने नियमों के संबंध हैं, इसलिए सरकार नए नियम लागू भी कर सकती है। इसे किसी को चुनौती देनी है तो नए सिरे पहल करनी होगी।
उधर, पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का भी मानना है कि सरकार का काम कानून के हिसाब से नियम बनाना और उसका क्रियान्वयन करना है। पदोन्न्ति नियम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जो व्यवस्थाएं पहले दे चुके हैं, उनके विपरीत नियम नहीं होने चाहिए। यदि नियम अदालतों के आदेशों के मुताबिक तैयार किए गए हैं तो सुप्रीम कोर्ट में जो प्रकरण चल रहा है, उसका इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।