मुंबई |
उच्चतम न्यायालय के आदेश की परवाह नहीं करते हुए जो लोग ‘वंदे मातरम’ नहीं कहना चाहते उन्हें देश से नहीं विधानसभा से निकाल दो। शिवसेना के मुख्य पत्र सामना के आज के संपादकीय में लिखा कि राष्ट्रगान बनने से पहले आजादी की लड़ाई के दौरान देश के सभी धर्मों के लोग ‘वंदे मातरम’ कहते थे। कई लोगों ने ‘वंदे मातरम’ कहते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया था पर उनके सामने धर्म कभी आड़े नहीं आया। अबू आजमी और वारिस पठान को ‘वंदे मातरम’ कहने पर धर्म आड़े क्यों आ रहा है। ये लोग कहते हैं कि चाहे उन्हें देश से बाहर निकाल दो लेकिन वे ‘वंदे मातरम’ नहीं कहेंगे।
कई महान नेताओं ने कहा ‘वंदे मातरम’
गौरतलब है कि मद्रास उच्च न्यायालय ने स्कूलों, कालेजों और सभी सरकारी कार्यालयों में सप्ताह में एक दिन ‘वंदे मातरम’ गायन या वादन अनिवार्य करने संंबंधी आदेश दिया है। ‘वंदे मातरम’ कहने का सीधा सा अर्थ है कि हे मातृभूमि तुझे सलाम, हे राष्ट्रमाता तुझे वंदन। शिवसेना ने कहा कि हम जिस देश में रहते हैं और जहां का खाते हैं, पीते हैं और श्वास लेते हैं और यदि देश के समक्ष झुकने की अनुमति जो धर्म नहीं देता तो उस धर्म को दुरुस्त करना होगा। सामना में कहा गया कि मौलाना अबुल कलाम आजाद से लेकर एपीजे अब्दुल कलाम तक कई महान नेताओं ने ‘वंदे मातरम’ कहा और उनकी राष्ट्रभक्ति में कभी धर्म आड़े नहीं आया तो फिर अबू आजमी और वारिस पठान के सामने धर्म आड़े क्यों आ जाता है। देश के मुसलमान अबू आजमी और वारिस पठान का समर्थन नहीं करते क्योंकि आज कल युवा पीढ़ी देश की मुख्य धारा से जुड़ी है।