नई दिल्ली |
सरकार इंडिविजुअल्स को दिवालिया घोषित करने की ऐसी प्रक्रिया तैयार करने जा रही है जो आर्थिक संकट के दलदल में फंसने के बजाय उन्हें इससे निकलने में मदद करेगी। नए नियम के तहत वक्त पर कर्ज की रकम नहीं चुका पानेवालों को आसान मौके दिए जाएंगे और उन्हें बैंक को एकमुश्त पैसे देने को बाध्य नहीं किया जाएगा। इसके पीछे मकसद प्रक्रिया को ज्यादा मानवीय बनाना है क्योंकि नए नियमों का वास्ता किसानों और किराना दुकानदारों से लेकर मध्यवर्ग के वेतनभोगियों से होगा जो रोजगार छिनने जैसे उचित कारणों की वजह से वक्त पर पैसे जमा नहीं करा पाते हैं।
लॉ फर्म केसर दास बी ऐंड असोसिएट्स में सिक्यॉर्ड ट्रांजैक्शंस ऐंड कॉर्पोरेट लॉ प्रैक्टिस के मैनेजिंग पार्टनर ऐंड हेड ऑफ इन्सॉल्वंसी सुमंत बत्रा ने कहा, ‘इससे बड़ा सामाजिक कलंक जुड़ा है। इसलिए आप दंड देने को ही आतुर नहीं हो सकते। लोगों को अपना जीवन फिर से पटरी पर लाने का मौका दिया ही जाना चाहिए।’
व्यक्तिगत दिवालियापन यानी इंडिविजुअल इन्सॉल्वंसी को लेकर 100 साल पहले नियम बने हैं, लेकिन उनका संयमपूर्वक इस्तेमाल पिछले कुछ दशकों से ही हो रहा है। ज्यादातर मामले जिला जजों के तहत आते हैं। हालांकि, बैंक अभी बकाया वसूलने के मकसद से बने सिक्यॉरिटाइजेशन ऐंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनैंशल ऐसेट्स ऐंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्यॉरिटी इंट्रेस्ट ऐक्ट (सरफेसी) के तहत डेट रिकवरी ट्राइब्युनल्स का रुख करते हैं।