नई दिल्ली |
सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा को लेकर केंद्र और राज्यों से कहा है कि वे स्वयंभू गोरक्षकों को संरक्षण न दें। कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा की घटनाओं पर उनसे जवाब भी मांगा है। इससे पहले, कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच को केन्द्र ने बताया कि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है लेकिन वह देश में गोरक्षा के नाम पर किसी भी प्रकार की गतिविधि का समर्थन नहीं करता। बेंच ने कहा, ‘आपका कहना है कि कानून-व्यवस्था राज्य के अधीन है और राज्य कानून के अनुसार कदम उठा रहे हैं। आप किसी प्रकार के स्वयंभू रक्षक समूह का समर्थन नहीं करते।’ कोर्ट ने सोशल मीडिया पर गोरक्षा के नाम पर अपलोड हिंसक सामग्री को हटाने के लिए केंद्र और राज्यों से सहयोग मांगा।
सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा, कानून-व्यवस्था राज्य के अधीन है और केंद्र सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं है, लेकिन केंद्र का मानना है कि कानून की प्रक्रिया के अनुसार देश में किसी भी स्वंयभू गोरक्षक समूह का कोई स्थान नहीं है। वहीं, बीजेपी शासित गुजरात और झारखंड की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि कथित गोरक्षा संबंधित हिंसक गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ उचित कार्रवाई की गई है। बेंच ने उनका बयान दर्ज किया और केंद्र एवं अन्य राज्यों को हिंसक घटनाओं के संबंध में अपनी रिपोर्ट 4 हफ्ते में दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 6 सितंबर की तारीख तय की है।
इससे पहले, कोर्ट ने पिछले साल 21 अक्टूबर को दायर याचिका पर 6 राज्यों से 7 अप्रैल को जवाब मांगा था। इस याचिका में कथित गोरक्षा समूहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है जो कथित रूप से हिंसा कर रहे हैं और दलितों एवं अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन ए पूनावाला ने अपनी याचिका में कहा है कि इन गोरक्षा समूहों द्वारा की जाने वाली कथित हिंसा इस हद तक बढ़ गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन लोगों के बारे में कहा था कि वे समाज को नष्ट कर रहे हैं।