नई दिल्ली |
पहले लोकसभा और फिर हाल ही में यूपी विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना कर चुकीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को अचानक से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे को दलितों के हित में खुद को शहीद की तरह पेश करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। मायावती का पारंपरिक वोटबैंक माने जाने वाले दलितों को लेकर बीजेपी की रणनीति भी उनके इस्तीफे के पीछे की वजह मानी जा रही है।
बीजेपी की वोटबैंक में सेंध से परेशान
बीजेपी दलित वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। बीजेपी नेताओं का दलितों के घर खाना से लेकर रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना इसी दिशा में उठाया गया सियासी कदम है। वहीं, मायावती यूपी के 19 प्रतिशत दलितों को अपने पाले में करने में असफल दिख रही हैं। कुल वोटरों में 12 पर्सेंट हिस्सेदारी वाला जाटव समुदाय ही उनका कट्टर समर्थक माना जाता है। बाकी बचे दलित समुदाय में बीजेपी आहिस्ते-आहिस्ते सेंध लगा चुकी है। 2014 के लोकसभा चुनावों और यूपी चुनाव में दलितों का रुख बीजेपी की तरफ दिखा। यूपी चुनाव में बीजेपी को उन जिलों में धमाकेदार जीत हासिल हुई, जहां गैर जाटवों की अच्छी तादाद थी। बीजेपी को एहसास है कि जाटव समुदाय का झुकाव बीएसपी की ओर है। ऐसे में कोविंद के जरिए बीजेपी गैर जाटवों में दखल बढ़ाने के लिए तैयार है।
इस्तीफे के पीछे है माया का ‘वापसी प्लान’
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