कोलकाता |
उत्तर भारत के उलट भगवान राम बंगाल में कभी भी ऐतिहासिक चरित्र नहीं रहे। इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में धारणाएं अलग हैं। पूर्वी यूपी में ज्यादातर लोग तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरित मानस को भक्ति भाव से पढ़ते हैं और लोगों के लिए राम उतने ही वास्तविक हैं जितना कि सूरज। लेकिन बंगाल में ऐसा नहीं है। दरअसल टैगोर ने लिखा था कि कवि का मस्तिष्क ही राम का जन्मस्थान है जो अयोध्या से कहीं ज्यादा वास्तविक है।
उत्तर भारत और बंगाल के बीच का अंतर मिट रहा है। टैगोर के बीरभूम समेत बंगाल के कुछ हिस्सों में रामनवमी और हनुमान जयंती धूमधाम से मनने लगी है जो लोगों का ध्यान खींच रही है। यह सूबे में बदल रहे सामाजिक-राजनैतिक ताने-बाने की तरफ इशारा है। रैलियों में बोलने वाले वक्ता इस मौके को अपनी हिंदू पहचान को प्रमुखता से स्थापित करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि जमीनी स्तर पर टीएमसी से असंतुष्ट तबका राम को टीएमसी के ‘अन्याय और आतंक’ के शासन के खिलाफ एक आइकन के तौर पर देख रहे हैं।
अगर आप इसे यूपी चुनावों के बाद भगवा लहर के विस्तार के तौर पर देख रहे हैं तो इस पर दोबारा सोचिए। दरअसल जिस तरह का नया सामाजिक-राजनैतिक ताना-बाना उभर रहा है उसके मुताबिक हिंदुत्व का मतलब देशभक्ति और सेक्यूलरिजम का मतलब मुस्लिम तुष्टिकरण है। 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद राममंदिर निर्माण के लिए कोलकाता में वीएचपी की रैलियों कट्टर हिंदुत्व की भावना में उभार देखने को मिला था। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। अब हिंदुत्व शिक्षित मध्यम वर्ग के कुछ लोगों के मन-मस्तिष्क को छू रहा है जो जेहादी इस्लाम के उदय से या तो तंग आ चुके हैं या असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।