नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि नागरिक अपने शरीर के अंगों पर “पूर्ण” अधिकार का दावा नहीं कर सकते। वे आधार नामांकन के लिए डिजिटल फिंगरप्रिंट और आईरिस को लेने से मना नहीं कर सकते हैं।
एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ से कहा कि किसी के शरीर पर पूर्ण अधिकार की अवधारणा एक मिथक है और ऐसे कई कानून हैं, जो इस तरह के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं। आयकर अधिनियम की धारा 139एए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में उन्होंने यह बात कही।
इस धारा के तहत 1 जुलाई से आयकर रिटर्न्स दाखिल करने के लिए और पैन कार्ड के लिए आवेदन करने के लिए आधार का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया गया है।
केंद्र ने यह भी कहा कि आधार अधिनियम के पारित होने के बाद यह नागरिकों के लिए अनिवार्य हो गया है कि वे यूआईडी हासिल कर लें।
रोहतगी ने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि कानून लोगों को आत्महत्या करने और और महिलाओं को एडवांस स्टेज पर गर्भपात करने से रोकता है। यदि उनका अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार होता, तो लोग अपने शरीर के साथ जो भी करना चाहते, वह करने के लिए स्वतंत्र होते।