नई दिल्ली |
आज संसद में भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरे होने पर विशेष सत्र चलाया जा रहा है। इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी संसद में भाषण पढ़ा। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं सदन में खड़ी होकर इस आंदोलन के बारे में बोल रही हूं। सोनिया ने कहा कि इस आंदोलन में कांग्रेस के कई कार्यकर्त्ताओं ने अपनी जान दी। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस से संकल्प पारित हुआ था और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शपथ ली थी।
यातनाओं के बावजूद डटे रहे लोग
बापू के ‘करो या मरो’ इन शब्दों ने पूरे देश में जोश भर दिया था जिसके बाद कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं को जेल में डाल दिया गया। नेहरू ने काफी लंबे समय तक जेल में समय बिताया। अंग्रेजी हुकुमत ने भी कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं पर गोलियां बरसाईं और राष्ट्रवादी अखबारों पर पांबदी लगाई। सत्याग्रहियों को डराया और धमकाया गया व महिलाओं का उत्पीड़न किया गया और लोगों को बर्फ की सिल्लियों पर लिटाकर जुल्म ढाए गए लेकिन इस सबके बावजूद लोग अपने संकल्प से इस आंदोलन से पीछे नहीं हटे।
आरएसएस पर साधा
हमें सभी आंदोलनकारियों को सम्मान के साथ याद करना चाहिए। सोनिया ने इस दौरान आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोगों और संगठनों ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध भी किया था। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि जब हम ये सालगिरह मना रह हैं, तो कई सवाल भी पैदा हो रहे हैं क्या अब देश अंधकार में नहीं जा रहा है। अंधकार की शक्तियां दोबारा उभर रही हैं, आजादी के माहौल में दोबारा भय फैल रहा है, जनतंत्र को नष्ट करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि ये आंदोलन हमें इस बात की याद दिलाता है कि संकीर्ण मानसिकता वाले, विभाजनकारी सोच वालों का कैदी बनने नहीं दे सकते हैं। महात्मा गांधी ने एक न्याय संगत भारत के लिए लड़ाई लड़ी थी. लेकिन इस पर नफरत और विभाजन की राजनीति के बादल छा गए हैं।